New Delhi : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) ने बुधवार को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे एजी पेरारिवलन (AG Perarivalan) को रिहा करने का आदेश दिया है। इसके लिए कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्ति का इस्तेमाल किया।
संविधान का अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को अपने समक्ष लंबित किसी भी मामले में न्याय करने के लिए आवश्यक कोई भी आदेश पारित करने की अनुमति देता है। जस्टिस एल नागेश्वर राव (Justices L Nageswara Rao) और बीआर गवई (BR Gavai) की पीठ ने कहा कि राज्य कैबिनेट का फैसला हमेशा राज्यपाल के लिए बाध्यकारी होता है।
रिहाई की मांग की थी
अदालत में कहा गया था कि तमिलनाडु के राज्यपाल एजी पेरारिवलन की रिहाई पर संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत तमिलनाडु मंत्रिपरिषद के फैसले से बंधे हैं। पेरारिवलन ने सितंबर 2018 में तमिलनाडु सरकार की तरफ से की गई सिफारिश के आधार पर जेल से समय से पहले रिहाई की मांग की थी।
संवैधानिक समर्थन नहीं है
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि पेरारिवलन की दया याचिका को भारत के राष्ट्रपति को भेजने के राज्यपाल के फैसले का कोई संवैधानिक समर्थन नहीं है। शीर्ष अदालत ने पेरारीवलन को रिहा करते हुए जेल में उसके अच्छे आचरण, चिकित्सा स्थिति, शैक्षिक योग्यता (हिरासत के दौरान हासिल की गई) और तमिलनाडु के राज्यपाल के पास उसकी दया याचिका की लंबितता को ध्यान में रखा।
30 साल से अधिक समय जेल में बिता चुके हैं
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल द्वारा पेरारिवलन की शीघ्र रिहाई की याचिका पर निर्णय लेने में अत्यधिक देरी ने भी उनकी रिहाई को आवश्यक बना दिया। पेरारिवलन 30 साल से अधिक समय जेल में बिता चुके हैं। सुनवाई के दौरान पीठ ने केंद्र सरकार के इस सुझाव से असहमति जताई कि उसे (अदालत को) पेरारिवलन की दया याचिका पर राष्ट्रपति के फैसले तक इंतजार करना चाहिए।
रिहा करने का आदेश पारित करेंगे
पीठ ने कहा था, “हम उसे जेल से रिहा करने का आदेश पारित करेंगे, क्योंकि आप गुण-दोष के आधार पर मामले पर बहस करने के लिए तैयार नहीं हैं। हम संविधान के खिलाफ जो कुछ हो रहा है, उस पर अपनी आंखें बंद नहीं कर सकते हैं और हमें संविधान के मुताबिक फैसला लेना होगा। कानून से ऊपर कोई नहीं है। गणमान्य व्यक्तियों को कुछ शक्तियां प्रदान की जाती हैं, लेकिन संविधान का काम रुकना नहीं चाहिए।”
राज्यपाल की कार्रवाई पर कड़ी आपत्ति जताई
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से एजी पेरारिवलन की रिहाई पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा था और केंद्र सरकार की खिंचाई करते हुए कहा था कि अगर सरकार एक सप्ताह के भीतर दोषी की दया याचिका पर स्टैंड नहीं लेती है, तो वह पेरारिवलन को “छोड़ देगी।” शीर्ष अदालत ने राज्य कैबिनेट की रिहाई की सिफारिश को साढ़े तीन साल से अधिक समय तक रोकने और फिर इसे राष्ट्रपति को भेजने के लिए तमिलनाडु के राज्यपाल की कार्रवाई पर कड़ी आपत्ति जताई।
जमानत दे दी थी
शीर्ष अदालत ने 9 मार्च को पेरारिवलन को उनके आचरण, खराब स्वास्थ्य और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए जमानत दे दी कि उन्होंने 30 साल से अधिक समय जेल में बिताया है। पीठ ने कहा था कि पैरोल पर तीन बार रिहा होने पर उसके आचरण के बारे में कोई शिकायत नहीं थी। पीठ ने इस बात का संज्ञान लिया था कि जेल से रिहा करने की पेरारीवलन की याचिका पर राज्यपाल को अभी फैसला करना है। केंद्र के कड़े विरोध के बावजूद शीर्ष अदालत ने पेरारीवलन को जमानत दे दी थी।
उम्रकैद में बदल दिया था
रिकॉर्ड और प्रासंगिक दस्तावेजों पर सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद, केंद्र सरकार ने पहले शीर्ष अदालत को अवगत कराया था कि तमिलनाडु के राज्यपाल ने कहा कि भारत के राष्ट्रपति पेरारिवलन की क्षमा याचिका पर पैसले के लिए “उपयुक्त सक्षम प्राधिकारी” हैं। 18 फरवरी 2014 को शीर्ष अदालत ने केंद्र द्वारा दया याचिका पर फैसला करने में 11 साल की देरी के आधार पर पेरारिवलन की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था।