Uttar Pradesh : नाम है, इंद्रप्रकाश। ये सामान्य किसान नहीं हैं। इन्होंने साल 1988 में वाराणसी के यूपी कॉलेज से एग्रीकल्चर में एमएससी एजी (हॉर्टिकल्चर) कर रखा है। हालांकि 2008 में खेती इन्होंने पारिवारिक मजबूरी में शुरू की।
खानदानी परिवार से ताल्लुक रखने वाले इंद्रप्रकाश के पास खेती ठीकठाक थी। आज नाम के अनुरूप इनकी खेती का प्रकाश दूर-दूर तक फैला है। इनका शुमार उत्तर प्रदेश के प्रगतिशील किसानों में होता हैं। जिले से लगायत प्रदेश और देश स्तर तक के ढेरों पुरस्कार इसके प्रमाण हैं।
इंद्रप्रकाश मुख्यमंत्री योगी के शहर गोरखपुर के एक छोटे से कस्बे जानीपुर से हैं। मौजूदा समय में उनके करीब 12 बीघे खेत में लता वर्ग एवं टमाटर की फसल उगी है। इसमें खरबूज, तरबूज, खीरा है। हर किस्म की खुद की खासियत है। मसलन खुशी प्रजाति का खीरा अगेती एवं बेहतर फलत के नाते जाना जाता है। इसकी फसल तैयार है। रोज सुबह का खीरा पास की मंडी में चला जाता है।
कुछ पीले एवं नारंगी रंग का येलो स्क्वैश ( कद्दू की ही प्रजाति) खेत में अलग ही दिख रही है। इसमें प्रचुर मात्रा में वीटा कैरोटीन मिलता है। मेट्रो सिटीज में इसके भाव प्रति कोलोग्राम 300 रुपये के करीब हैं। यहां मात्र 50 रुपये।
पीले रंग का खूबसूरत तरबूज मीठा तो होता ही है। इसमें बीज नहीं होते। भूषण नाम की लौकी का उपज में कोई मुकाबला नहीं है। गोभी की नर्सरी डाली जा चुकी है। इसके पहले आलू की फसल ले चुके हैं। चाहे कुफरी नीलकंठ हो या आलू की अन्य कोई नयी प्रजाति सबके लिए उनका खेत प्रयोगशाला जैसा है।
प्राकृतिक रूप से करते हैं कीटों का नियंत्रण
इंद्रप्रकाश का भरसक प्रयास रहता है कि कीटों एवं रोगों का नियंत्रण जैविक तरीके से हो। ताकि इनके रोकथाम में जहरीले रसायनों का प्रयोग न्यूनतम हो और उत्पाद स्वास्थ्य के लिए बेहतर हों। इसके लिए पूरे खेत में जगह -जगह बांस की फट्टियों पर पीले एवं हरे रंग की कीटों को चिपकने वाली पॉलीथिन लगाएं हैं। इसी तरह नर कीटो को आकर्षित करने के लिए मादा की गंध वाले ट्रैप भी लगाए हैं।
मादा की गफलत में आने वाला नर इसमें फ़सकर मर जाता है। नर के न रहने पर स्वाभाविक तरीके से प्रजनन चक्र रुकने से इनपर जैविक नियंत्रण हो जाता है। इसी तरह खेत में जगह-जगह गेंदे के फूल लगे हैं। बकौल इंद्रप्रकाश इससे टमाटर में लगने वाले निमिटोड नामक कीट का नियंत्रण हो जाता है। साथ ही मधुमक्खियों एवं तितलियों के आने से आसपास की बाकी फसलों के परागण में वृद्धि से बेहतर उपज भी होती है।
सरकार की मदद से सिंचाई की अद्यतन तकनीक लगा सका
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार के सहयोग के बाबत उनका कहना है कि बिना योगी सरकार के सहयोग के गर्मी में श्रम साध्य सब्जी की इतनी खेती मेरे लिए असंभव थी। सरकार की योजना से ही न्यूनतम लागत से मैं ड्रिप एवं स्प्रिंकलर लगा सका। इसकी वजह से सिंचाई एवं श्रम की लागत बहुत कम हो गई।
अब पूरे खेत की सिंचाई में मात्र 6 घन्टे लगते हैं। सिंचाई के परंपरागत तरीके से एक दिन में मात्र दो बीघे की सिंचाई हो पाती थी। इसके लिए 2 श्रमिक लगते थे । अब पूरे खेत की सिंचाई मात्र 6 घन्टे में हो जाती है। इस तरह हमारा समय एवं संसाधन दोनों बचता है। 60-90 फीसद पानी की बचत बोनस है।
पूरे खेत की पॉलीथिन से मल्चिंग मेड पर बोआई और जरूरत के अनुसार ड्रिप से सिर्फ पौधों को पानी मिलने के नाते खर पतवारों का भी जैविक तरीके से नियंत्रण हो जाता है। इस सबसे मेरा ढेर सारा श्रम बच जाता है। लागत कम होने से लाभ बढ़ जाता है। उनके अनुसार किसान किसी भी स्थिति में कुछ भी पैदा कर सकता है। बस उसे बाजार में अपनी उपज का वाजिब दाम मिलना चाहिए।
योगी सरकार इसके लिए हर संभव प्रयास भी कर रही हैं। सरकार के कमिटमेंट के अनुसार प्रोसेसिंग इकाइयां लग जाएं तो खेतीबाड़ी का कायाकल्प हो जाएगा। किसानों को भी परंपरागत खेती की जगह बाजार देख कर खेती करनी होगी। उत्पाद को जैविक बनाना होगा। कोरोना के बाद लोगों में स्वास्थ्य के प्रति बढ़ी जागरूकता किसानों के लिए एक अवसर भी है।
साल के आठ महीने 15 लोगों को देते हैं रोजगार
साल के आठ महीने वह 12 से 15 लोगों को रोजगार देते हैं। इनमें भी 80 फीसद महिलाएं होती हैं क्योंकि नर्सरी डालना, उनको सुरक्षित खेत तक पहुंचाना, नाजुक पौधों का रोपण, निराई, तुड़ाई और सुरक्षित पैकिंग के मुख्य काम वह पुरुषों की अपेक्षा बेहतर कर लेती हैं।