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काम की खबर : विशेष संचारी रोग नियंत्रण अभियान में इन जीवों से बचाव की मिलेगी जानकारी, आप भी जानें

Deoria News : जिला कृषि रक्षा अधिकारी रतन शंकर ओझा ने बताया है कि जनपद में जेई/ एईएस रोग की रोकथाम हेतु विशेष संचारी रोग नियंत्रण पखवाडा के अन्तर्गत चूहा एवं छछूंदर नियंत्रण कार्यक्रम चलाया जायेगा, जो 1 से 30 अप्रैल तक चलेगा। अभियान के अन्तर्गत कार्यक्रम चलाकर समस्त कृषकों/ जनसमुदाय को रोग से बचाव एवं नियंत्रण के लिए जागरूक किया जायेगा।

उन्होंने चूहा नियंत्रण का साप्ताहिक कार्यक्रम के विवरण में बताया है कि जेई / एईएस रोग की रोकथाम हेतु विरोध संचारी रोग नियंत्रण पखवाडा के अन्तर्गत चूहा एवं छछूंदर नियंत्रण,चूहा नियंत्रण अभियान के अन्तर्गत तिथिवार किये जाने वाले कार्य –

-प्रथम दिन-क्षेत्र भ्रमण एवं कार्यस्थल की पहचान करना
-दूसरे दिन खेत / क्षेत्र का निरीक्षण एंव बिल को बन्द करते हुये चिन्हित कर झण्डे लगाना
-तीसरे दिन खेत / क्षेत्र का निरीक्षण कर जो बिल बन्द हो, वहां से झण्डे हटाना। जहां पर बिल खुले पाएं, वहां पर झण्डा लगे रहने दें। खुले बिल में एक भाग सरसो का तेल एंव 48 ग्राम भुना चना / गेंहू / चावल आदि से बने चारे को बिना जहर मिलाये बिल में रखें
-चौथे दिन बिलों का निरीक्षण कर बिना जहर का वास फिर रखें
-पांचवे दिन जिंक फास्फाईड 80 प्रतिशत की 01 ग्राम मात्रा को 01 ग्राम सरसों तेल व 48 ग्राम भुना चना / गेहू आदि से बने चारे को बिल में रखें
-छठे दिन बिलो का निरीक्षण करें तथा मरे चूहों को एकत्र कर जमीन में गाड़ दें
-सातवें दिन बिलों को फिर बन्द कर दें। अगले दिन यदि बिल खुले पायें तो कार्यक्रम फिर करें।

उन्होंने बताया कि चूहे मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं, घरेलु एवं खेत / क्षेत्र के चूहे। घरेलू चूहा घर में पाया जाता है, जिसे मूषक कहा जाता है। खेत / क्षेत्र के चूहों में फील्ड रेट साप्ट फील्ड रेट एवं फील्ड माउस प्रमुख हैं, भूरा चूहा खेत / क्षेत्र व घर में दोनो में तथा जंगली चूहा जंगल रेगिस्तान, झाडियों में पाया जाता है।

चूहे की संख्या नियंत्रित करने के लिये अन्न भण्डारण पक्का कंक्रीट तथा धातु से बनी बखारी/ पात्रों में करना चाहिए, ताकि उनको भोज्य पदार्थ सुगमता से उपलब्ध ना हो। चूहे अपना बिल झाडियों, कूड़ी आदि में स्थायी रूप से बनाते हैं। इन क्षेत्रों का समय समय पर निरिक्षण एवं साफ-सफाई करके उनकी संख्या नियंत्रित कर सकतें है। चूहों के प्राकृतिक शत्रुओं – बिल्ली, सांप, उल्लू, बाज, चमगादण आदि द्वारा चूहों को भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है। इनको संरक्षण देने से चूहों की संख्या नियंत्रित हो सकती है।

एल्यूमिनियम फास्फाईड दवा की 3-4 ग्राम मात्रा प्रति जिन्दा बिल में डालकर बिल बन्द कर देने से उससे निकलने वाली गैस से चूहे मर जाते है। चूहा नियंत्रण अभियान का क्रियान्वयन चूहा नियंत्रण कार्यक्रम अभियान के रूप में चलाया जायेगा, जिसमें स्वयंसेवी संगठनों स्वयं सहायता समूहों किसान क्लबों, कृषि तकनीकी प्रबन्ध अभिकरण (आत्मा), बीज / उर्वरक / रसायन विक्रेता इफको सहकारिता का सहयोग प्राप्त किया जायेगा।

विभागीय योजनान्तर्गत अनुमन्य 50 प्रतिशत अनुदान पर मूषकनाशी रसायनों को कृषकों को उपलब्ध कराया जायेगा। चूहा नियंत्रण के विषय में परिचर्चा मोबाईल, व्हाट्सप ऐप इत्यादि के माध्यम से जनपद / तहसील / ब्लाक, ग्राम पंचायत स्तर पर अपनाने के लिये जन सामान्य को प्रोत्साहित किया जायेगा।

स्थानीय ग्रामवासियों की सहभागिता से चूहा नियंत्रण से सम्बन्धित नारों की बाल राईटिंग कराकर भी लोगों को जागरूक किया जायेगा। इस अभियान के क्रियान्वयन में जनसामान्य का सहयोग प्राप्त करते हुए जनसहभागिता सुनिश्चित करने पर विशेष बल दिया जायेगा।

मच्छर प्रतिरोधी पौधे के संबंध में अधिकारी ने बताया कि जेई रोग के विषाणु के वाहक मच्छरों को कुछ विशेष पौधों को लगाकर नियंत्रण किया जा सकता है। जैसे गेंदा, गुलदाउदी सिट्रोनेला रोज मेरी तुलसी लेवेन्डर, जिरेनियम ये पौधे तीव्र गंध वाले एसेन्शियल आयल अवमुक्त करते है, जिनसे मच्छर दूर भाग जाते है। इस प्रकार इन फूल- पौधों को घरों के आसपास लगाने से वातावरण तो सुगन्धित होता ही है, साथ ही खतरनाक मच्छरों से भी बचाव होता है।

मेंथा जैसे पौधे चूहों एवं छछूंदर आदि जीव- जन्तुओं को अत्यन्त प्रतिकर्षित करते हैं। कुछ पौधों की प्रजातियों द्वारा तो ऐसे रासायनिक तत्व मुक्त किये जाते हैं, जो मच्छरों की प्रजनन क्षमता कम कर देते हैं। इस प्रकार इन पौधों को लगाकर भी मच्छरों / चूहों को दूर कर जेई / एईएस रोग से बचाव किया जा सकता है।

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