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पथरदेवा विधानसभा : त्रिपाठी की राह का रोड़ा बनेंगे परवेज! शाही को मिलेगा फायदा, पढ़ें इस सीट का सियासी समीकरण

Deoria News : पूर्वांचल में स्थित देवरिया जिला कई कद्दावर नेताओं की जन्मस्थली और कर्मस्थली रहा है। यहां की 7 विधानसभा सीटें बेहद महत्वपूर्ण हैं। मगर इस बार यहां की पथरदेवा विधानसभा सीट (Pathardeva Assembly) पर सबकी निगाहें टिकी हैं।

दरअसल इस सीट पर त्रिकोणीय संघर्ष की तस्वीर बनती दिखाई दे रही है। पथरदेवा से भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता और योगी आदित्यनाथ कैबिनेट (Yogi Adityanath Cabinet) में कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही (Surya Pratap Shahi) नामांकन कर चुके हैं। उनके चिर-प्रतिद्वंदी रहे ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) से इस सीट पर ताल ठोक रहे हैं। इन दोनों के बाद बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) ने परवेज आलम को टिकट देकर इस सीट से लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है।

बड़े नाम हैं
देवरिया-कुशीनगर की राजनीति में ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी और शाही दो बड़े नाम हैं। इससे पहले दोनों कुशीनगर जिले की कसया विधानसभा सीट पर चुनावी अखाड़े में आमने-सामने हो चुके हैं। इन दोनों नेताओं में हमेशा बराबरी की लड़ाई रही। अब एक बार फिर कई साल बाद दोनों दिग्गज पथरदेवा विधानसभा सीट से एक दूसरे को चुनौती दे रहे हैं।

मुकाबला बढ़ गया है
लेकिन इस बार इन दोनों के बीच बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी परवेज आलम ने ताल ठोकर मुकाबला बढ़ा दिया है। परवेज आलम पथरदेवा विधानसभा सीट से विधायक रहे स्वर्गीय शाकिर अली के बेटे हैं। उनका सपा में बड़ा रूतबा था। एक जमाने में वह मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के बेहद करीबी लोगों में शुमार थे। इस सीट से उन्होंने शाही को भी पटकनी दी थी।

37 साल से चुनौती दे रहे
पहले शाही और ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी के बीच के चुनावी जंग को समझते हैं। ये दोनों नेता साल 1985 से एक दूसरे को चुनौती देते आए हैं। वर्ष 1985 में कसया सीट पर सूर्य प्रताप शाही ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे त्रिपाठी को 559 वोटों से पराजित किया था। लेकिन अगले चुनाव में साल 1989 में ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी फिर चुनावी मैदान में उतरे और जनता दल के उम्मीदवार के रूप में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के नेता शाही को करारी शिकस्त दी। तब वह पहली बार विधायक चुने गए।

पटखनी देते रहे
मगर इसी बीच तेजी से परिस्थितियां बदलीं और साल 1991 में मध्यावधि चुनाव हुआ। तब राम मंदिर लहर का दौर था और इसका फायदा शाही को मिला। उन्होंने मध्यावधि चुनाव में त्रिपाठी को फिर परास्त किया। लेकिन बाद में साल 1993 में हुए चुनाव में ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी ने शाही को हराकर जीत दर्ज की और विधायक चुने गए। इसके बाद 1996 के चुनाव में ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी ने जनता दल से अपना रिश्ता तोड़ दिया और समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। इसके बाद के 2 चुनाव 2002 और 2007 में उन्होंने सूर्य प्रताप शाही को करारी शिकस्त दी। बाद में 2009 में परिसीमन में कसया विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व समाप्त हो गया।

शाकिर अली ने पराजित किया
परिसीमन के बाद पहला चुनाव 2012 में हुआ। जिसमें ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी कुशीनगर विधानसभा क्षेत्र और शाही नवसृजित पथरदेवा सीट से चुनावी अखाड़े में उतरे। इस सीट से पहले ही चुनाव में शाही को हार का सामना करना पड़ा। उन्हें समाजवादी पार्टी के शाकिर अली ने पराजित किया। लेकिन बाद में साल 2017 में मोदी लहर के बीच शाही ने शाकिर अली को परास्त किया। फिलहाल वह इसी सीट से विधायक हैं।

बसपा ने बनाया उम्मीदवार
शाकिर अली के निधन के बाद इस सीट पर उनके बेटे परवेज आलम को प्रतिद्वंदी माना जा रहा था। लेकिन समाजवादी पार्टी ने ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी को चुनावी अखाड़े में उतारा है। जबकि परवेज ने सपा से त्यागपत्र देकर बहुजन समाज पार्टी की सदस्यता ग्रहण की और बसपा ने उन्हें इस चर्चित सीट से उम्मीदवार बनाया है।

शाही को मिलेगा फायदा
जिले की राजनीति के जानकारों का मानना है कि इससे समाजवादी पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। क्योंकि पथरदेवा विधानसभा सीट पर मुस्लिम मतदाता ज्यादा हैं। पहले यह पूरा वोट बैंक समाजवादी पार्टी को मिलता था। लेकिन अब परवेज आलम के अखाड़े में उतरने के बाद इस वोट बैंक में दरार पड़ेगी और इसका बंटवारा होगा। इसका पूरा फायदा सूर्य प्रताप शाही को मिलेगा।

वोट बैंक है
हालांकि ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी को कम आंकना किसी भी लिहाज से ठीक नहीं होगा। बेशक वह पथरदेवा विधानसभा के लिए नया चेहरा हैं, लेकिन इस विधानसभा के देसहीं और दूसरे क्षेत्रों में खासे लोकप्रिय हैं। उनका एकमुश्त वोट बैंक है। साथ ही समाजवादी पार्टी के परम्परागत वोटर उनके साथ जुड़े हुए हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सपा के मुस्लिम वोट बैंक में परवेज आलम कितनी सेंधमारी कर पाते हैं।

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