New Delhi : भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) न्यायमूर्ति बीआर गवई आज, 23 नवंबर 2025 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। उनका कार्यकाल संविधानिक मूल्यों और सामाजिक न्याय पर आधारित रहा। मई 2025 में जब उन्हें भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था, तो यह ऐतिहासिक क्षण था। वह पहले बौद्ध और केवल दूसरे अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाले न्यायाधीश बने, जिन्होंने देश के सर्वोच्च न्यायिक पद को संभाला। उनसे पहले यह सम्मान न्यायमूर्ति के.जी. बालाकृष्णन को मिला था।
न्यायमूर्ति गवई का योगदान
अपने संक्षिप्त लेकिन प्रभावशाली कार्यकाल में गवई ने न्याय तक पहुंच, न्यायिक दक्षता और संविधानिक नैतिकता पर जोर दिया। उन्होंने NALSA जागृति योजना शुरू की, जिसका उद्देश्य कानूनी सहायता को और सशक्त बनाना था। साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में केस मैनेजमेंट को सरल बनाने के लिए प्रशासनिक सुधार लागू किए। उनके भाषणों में अक्सर यह संदेश रहा कि न्यायपालिका का दायित्व है कि वह हाशिए पर खड़े समुदायों की रक्षा करे और संविधानिक वादों को वास्तविकता में बदले।
1960 में महाराष्ट्र के अमरावती में जन्मे गवई का जीवन उनके पिता आरएस गवई से काफी प्रभावित रहा। उनके पिता एक सामाजिक कार्यकर्ता और राजनेता थे। इस पृष्ठभूमि ने उनमें समानता और जनसेवा के प्रति गहरी प्रतिबद्धता पैदा की। उनका सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचना उन समुदायों के लिए प्रतिनिधित्व का क्षण था, जिन्हें लंबे समय तक न्यायपालिका में पर्याप्त स्थान नहीं मिला।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत का कार्यभार ग्रहण
गवई की सेवानिवृत्ति के बाद अब जिम्मेदारी न्यायमूर्ति सूर्यकांत को सौंपी जा रही है। वह कल, 24 नवंबर 2025 को भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे। उनका कार्यकाल 9 फरवरी 2027 तक रहेगा, जो अपेक्षाकृत लंबा है और उन्हें कई महत्वपूर्ण संवैधानिक और सामाजिक मामलों की अध्यक्षता करने का अवसर देगा।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत का जीवन और करियर
10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार में जन्मे सूर्यकांत एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं। उन्होंने हिसार के गवर्नमेंट पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज से स्नातक किया और 1984 में महार्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से कानून की डिग्री प्राप्त की।
उनका कानूनी करियर पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में वकील के रूप में शुरू हुआ, जहां वह सांविधानिक सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और तीखे तर्कों के लिए पहचाने गए। 2001 में उन्हें हाई कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। बाद में उन्हें उसी उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश की जिम्मेदारी दी गई। साल 2019 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया।
अपने करियर के दौरान सूर्यकांत ने संविधानिक अधिकारों, पर्यावरण संरक्षण और संस्थागत जवाबदेही से जुड़े कई प्रगतिशील फैसले दिए। उनके निर्णय व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संस्थागत स्थिरता के बीच संतुलन को दर्शाते हैं।
शपथ समारोह और अंतरराष्ट्रीय महत्व
न्यायमूर्ति सूर्यकांत का शपथ ग्रहण समारोह नई दिल्ली में संविधान दिवस के अवसर पर आयोजित होगा। इसमें भूटान, केन्या, मॉरीशस, नेपाल और श्रीलंका सहित 15 से अधिक देशों के मुख्य न्यायाधीश शामिल होंगे। यह अंतरराष्ट्रीय उपस्थिति भारत की न्यायपालिका के वैश्विक लोकतांत्रिक महत्व को रेखांकित करती है।
चुनौतियाँ और अवसर
नए मुख्य न्यायाधीश के रूप में सूर्यकांत कई गंभीर मुद्दों का सामना करेंगे:
- निर्वाचन सुधार: चुनावी बॉन्ड, वित्तीय पारदर्शिता और मताधिकार से जुड़े मामले।
- डिजिटल और साइबर कानून: निजता, डेटा सुरक्षा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का नियमन।
- आपराधिक न्याय सुधार: मामलों में देरी, जेलों में भीड़ और हिरासत संबंधी अधिकार।
- संविधानिक विवाद: संघवाद, अल्पसंख्यक अधिकार और विधायी कार्रवाइयों को चुनौती देने वाले मामले।
यह देखना भी अहम होगा कि नए सीजेआई सुप्रीम कोर्ट के लंबित मामलों के बोझ को कैसे संभालते हैं और क्या वह गवई की तरह न्यायिक दक्षता और न्याय तक पहुंच पर जोर बनाए रखते हैं।
निरंतरता और बदलाव
गवई से सूर्यकांत तक का यह परिवर्तन सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठता पर आधारित परंपरा को दर्शाता है। गवई का कार्यकाल प्रतिनिधित्व के लिए ऐतिहासिक रहा, जबकि सूर्यकांत का कार्यकाल लंबा और व्यापक मुद्दों से जुड़ा होगा।
यह बदलाव केवल प्रशासनिक नहीं है, बल्कि न्यायालय की न्यायिक दर्शन और प्राथमिकताओं को भी आकार देगा। गवई ने समावेशिता पर जोर दिया, जबकि सूर्यकांत संविधानिक कठोरता और सुधारों के लिए जाने जाते हैं। इस तरह सुप्रीम कोर्ट एक नए दौर में प्रवेश कर रहा है, जहां सामाजिक न्याय और संस्थागत सुधार दोनों का संतुलन देखने को मिलेगा।
