Gautam Buddh Nagar : जिला कृषि रक्षा अधिकारी गौतमबुद्ध नगर ने किसानों को फसलों को रोगों से बचाव से संबंधित बड़ी जानकारी दी है। इसका पालन कर किसान अपनी फसलों को रोगों से बचा सकते हैं।
उन्होंने कृषकों को अवगत कराया है कि आलू एवं राई/ सरसों की फसलों में तापमान में कमी एवं आर्दता में वृद्धि के कारण आलू की फसल में अगेती / पछेती झुलसा एवं राई / सरसों में माहू के प्रकोप की सम्भावना बढ़ गयी है। इन रोगों / कीटों से बचाव के लिए एडवाइजरी जारी की जा रही है। किसान एडवाइजरी के अनुसार अपनी फसलों की इन रोगों / कीटों से बचाव करना सुनिश्चित करें।
1 – आलू- अगेती झुलसा – आरम्भ में इस रोग के लक्षण निचली एवं पुरानी पत्तियों पर छोटे-छोटे अण्डाकार भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। इसका प्रभाव पत्तियों और कन्द दोनों पर पड़ता हैं। प्रभावित कन्दों में धब्बे के नीचे का गूदा एवं शुष्क हो जाता है।
पछेती झुलसा – यह आलू की फसल में लगने वाला भयानक रोग है। इसका प्रभाव पौधों की पत्तियों पर एवं कन्दों पर होता है। बदलीयुक्त मौसम 10-20 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान एवं 80 प्रतिशत से अधिक आपेक्षित आर्दता की दशा में बीमारी की सम्भावना बढ़ जाती है।
इन दोनों रोगों से बचाव के लिए मैन्कोजेब 75 प्रति, डब्ल्यूपी 2 से 2.5 किग्रा अथवा कॉपर ऑक्सी क्लोराइड 50 प्रति, डब्ल्यूपी 2 से 2.5 किग्रा मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
2 – राई / सरसों – माहू कीट – इस कीट के शिशु कीट एवं प्रौढ़ कीट पीलापन लिए हुए हरे रंग के होते हैं, जो कोमल तनो, पत्तियों, फूलो एवं नई फलियों के रस को चूसकर कमजोर कर देती हैं। माहू कीट मधुश्राव भी करते है। जिस पर काली फफूँद उग जाती है, जिससे प्रकाश संश्लेषण में बाधा उत्पन होती है एवं पौधे को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता है, जिससे फसल कमजोर हो जाती है।
इस कीट से बचाव के लिए जैव कीटनाशी एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रति ईसी की 2.5 लीटर मात्रा को 400-500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर छिड़काव करना चाहिए। उन्होंने बताया कि रसायनिक नियंत्रण के लिए डाईमेथोएट 30 प्रति ईसी, ऑक्सीडेमेटान मिथाइल 25 प्रति ईसी अथवा क्लोरोपाइरीफॉस 20 प्रति ईसी की 1.0 लीटर मात्रा को 400-500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर छिड़काव करना चाहिए।
इस कीट के नियंत्रण के लिए कीट की सघनता के अनुसार 10-15 येलो स्टिकी ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त कम तापमान के कारण फसलों में पाले की सम्भावना रहती है, जिसके बचाव के लिए खेत में नमी बनाये रखने के उद्देश्य से हल्की सिंचाई करें। जिला सूचना अधिकारी राकेश चौहान ने यह जानकारी दी।