हृदय परिवर्तन ही सत्संग का मुख्य उद्देश्य : पंडित राघवेन्द्र शास्त्री

Deoria News : सलेमपुर के टीचर कालोनी में चल रहे श्रीमदभागवत कथा के तृतीय दिवस केरल से पधारे पंडित राघवेन्द्र शास्त्री ने कहा कि हृदय परिवर्तन ही सत्संग का मुख्य उद्देश्य है।

भगवान कपिल ने माता देवहुती को, भगवान शंकर ने पार्वती को एवं भगवान कृष्ण ने अर्जुन को सत्संग के माध्यम से ज्ञान प्राप्त कराया। भागवत दर्शन सुलभ है लेकिन भगवान की कथा एवं सत्संग दुर्लभ है। शास्त्री जी ने कहा कि संत का कोई व्यक्तिगत दु:ख नहीं होता। श्रीमद्भागवत महापुराण प्रत्यक्ष भगवान श्री कृष्ण का विग्रह है। कथा श्रवण से मनुष्यों के समस्त पाप समाप्त हो जाता है।

उन्होंने कहा कि सनक, सनंदन आदि ऋषियों की कथा में भक्ति देवी उपस्थित हो जाती हैं। कथा के प्रभाव से उनके दोनों पुत्र ज्ञान और वैराग्य चिर तारुण्य प्राप्त कर लेते हैं। हमें संत और ग्रंथ की बात माननी चाहिए। बिना सत्संग के विवेक संभव नहीं है। पंडित राघवेंद्र शास्त्री ने धुंधुली और गोकर्ण प्रसंग का मर्मस्पर्शी वर्णन करते हुए कहा कि सद् पुत्र सुख देने के साथ-साथ पुरुखों को तारने वाला होता है। गोकर्ण जी ने भाई को भी यह कथा सुना प्रेतत्व से मुक्ति दिला दी।

इस अवसर पर त्रियुगी नारायण पाण्डेय, अभिषेक जायसवाल, अजय दूबे वत्स, अशोक तिवारी, भोला बाबा, अवधेश तिवारी, प्रदुम्मन पांडेय, बीबी तिवारी, अशोक बरनवाल आदि मौजूद रहे।

कलियुग को शस्त्र नहीं शास्त्र से जीता जा सकता है
श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन पंडित राघवेन्द्र शास्त्री ने कहा कि महाराज परीक्षित एवम कलयुग के बीच संवाद हुआ। कलियुग में अनेक अवगुण हैं, लेकिन एक विशेषता भी है। कलियुग में अन्य युगों की अपेक्षा भगवत प्राप्ति सरल है। कलियुग को शस्त्र से नहीं शास्त्र से जीता जा सकता है।

उन्होंने बताया कि गुरू की महत्ता हमारे जीवन में अनुपम है, क्योंकि गुरू के बिना हम जीवन का सार ही नहीं समझ सकते हैं। लेकिन इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि गुरू के समक्ष चंचलता नहीं करनी चाहिए। सदा ही अल्पवासी होना चाहिए। जितनी आवश्यकता है, उतना ही बोलें और जितना अधिक हो सके गुरू की वाणी का श्रवण करें।

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